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What is Vertigo in Hindi

BPPV vertigo

वर्टिगो (Vertigo) लैतिन भाषा के वर्टो शब्द से लिया गया है। वर्टो का अर्थ है भ्रमि – भ्रमि शब्द संस्कृत के (भ्रमिन्) देशज शब्द भ्रमी से बना है। भ्रमि का अर्थ है भ्रम की स्थिति रहना। भ्रमित होना। जैसे कि शब्दानुसार किसी व्यक्ति को लगता है कि उसके आसपास का समस्त भू-लोक चक्कर लगा रहा है। उसके चारों तरफ स्थित वस्तुएं जो क्षण-भर पूर्व अपने स्थान पर स्थिर थी क्षणमात्र में उसके चारों तरफ घूम रही हैं। जबकि ऐसा होता नहीं है,समस्त वस्तुएं और भू-मण्डल अपनी पूर्व अवस्था में स्थित और स्थिर रहता है। घूमना और चक्कर आने (BPPV vertigo) की अनुभूति व्यक्ति के संवेदीं तंत्र की कमजोरी के कारण ही होती है। घूमना या चक्कर-आना (dizziness) है जिसमें मनुष्य को गति (चाल) चलने (घूमने) की अनुभूति होती है। जबकि वास्तव में वह स्थिर ही होता है।

यह स्थिति अंतःकरण के प्रघाण तंत्र (vestibular system) वेस्टीब्युलर सिस्टम के बिगड़ने एवं भली भाँति कार्य नहीं करने के कारण ही होती है। जिसका अर्थ है कि व्यक्ति के प्रघाण तंत्र का भली भांति कार्य नहीं कर पाना।

भ्रमि (Vertigo) की अवस्था में रोगी को जी-मितलाना nausea कै (उल्टी) होना आम लक्षण है। रोगी को खड़े रहने में कठिनाई का अनुभव होता है।

क्षैतिज प्रकाशकीय गतिशीलता अक्षिदोलन (nystagmus)  के कारण अनचाहे दृष्य की अनुभूति होने लगती है। क्षैतिज भ्रमि का एक लक्षण यह भी हो सकता है।

भ्रमि (Type of Vertigo) तीन प्रकार की होती है।

1. प्रकाशकीय गतिशीलता अक्षिदोलन (Optokinetic nystagmus) अक्षिदोलन वह शारीरक लक्षण होता है जो की आँखों की इच्छा या अनिच्छा से निरंतर गतिमान रहता है । यह शैशव काल या फिर उसके पश्चात भी हो सकता है। और यह रोगी की दृष्य शक्ति की क्षमता या

दृष्टि को कम या सीमित कर सकता है इसके दो रूप होते हैं: eCitizen विरोधी और sercret शारीरिक.

चक्षुदोलन के भी दो रूप होते हैं :

विकृतिजन्य (रोग विज्ञान संबंधी) (पैथोलॉजिकल) और

शारीरिक क्रियात्मक- शारीरिक विज्ञान संबंधी (फिजियोलॉजिकल)।

2. वस्तुनिष्ठ भ्रमि Vertigo (objective) – वस्तुनिष्ठ का अर्थ है भौतिकवादी रोगी को इसके अंतर्गत अपने आसपास की समस्त वस्तुएँ चलायमान (गतिशील) लगने लगती है।

3. व्यक्तिनिष्ठ भ्रमि Vertigo (subjective) – यही यदि व्यक्तिनिष्ठ हो तो इसमें व्यक्ति स्वयं घूमता हुआ अनुभव करता है।जैसे उसे लगता है यदि उसे रोका नहीं गया तो वो गिर जायेगा।

छद्म (कृत्रिम) भ्रमि Vertigo (pseudovertigo) -इस अवस्था में रोगी को अपने सिर के भीतर घूमने का अहसास होता है।उसे ऐसा लगता है कि उसके सिर का प्रत्येक अवयव घूम रहा हो।

Vertigo भ्रमि में यदि सिर चकराता है तो रोगी और उसके परिजनों को तुरन्त सावधान हो जाना चाहिए। क्योंकि असल (Vertigo) भ्रमि के मस्तिष्क चकराना, माथे और सिर में तीव्र पीड़ा होना,चक्कर आना नॉज़िया ही असली Vertigo भ्रमि के लक्षण हैं।और वर्तमान में ये रोग देहली में अपना मुहँ सुरसा के समान खोलता चला जा रहा है। इस बीमारी के रोगियों का अपनी रसोई में कार्य करना, सीढ़ियों से अकेले उतरना और चढ़ना, भारी यान्त्रिक गतिविधियों में हिस्सेदारी करना कार्य करना, प्रकाश रहित (अँधेरे स्थानों) पर आना-जाना,वाहन चलाना आदि कार्य करना हानीकारक ही नहीं दुर्घटनाकारी हो सकता है।जो ऐसे रोगी के लिये जोखिम भरी स्थिति होती है।

दिल्ली में दिल्लीवासियों का वहाँ की भागम-भाग गतिविधियों के कारण यदा-कदा सिर घूमने लगता है। और इस परेशानी से लगभग सभी का सामना कभी न कभी हुआ ही होता है।अधिकतर लोग इसे सामान्य अवस्था समझकर नज़र अंदाज कर देते हैं किन्तु इसके मूल कारण की तरफ लोग ध्यान नहीं देते हैं। इन लक्षणों को इस प्रकार के प्रमाण (दलीलें) देकर स्वयं को दिलासा दे लेते हैं जैसे – सुबह कुछ खाया नहीं था, रात उल्टा-सीधा खाया था। सुबह को बिना कुछ खाए-पिये घर से निकल गया था। रात को नींद पूरी नहीं हुई है। दिनभर की भाग दौड़कर करने के बाद देर रात घर आया और उल्टा-पूल्टा खा-पीकर सो गया। देर रात को सोया था नींद पूरी नहीं हुई आदि आदि। किंतु उनका ध्यान इस ओर कम ही जाता है कि हो सकता है बार-बार सिर का चकराना, सिर दर्द होना, घुमेरें आना वर्टिगो (Vertigo) भ्रमि ही हो।

दर असल (Vertigo) भ्रमि में भी रोगी को यही सब महसूस होता है। जैसे सब कुछ घूम रहा है उसके चारों तरफ चक्कर लगा रहा है। या सम्पूर्ण वातावरण ही उसके चारों ओर घूम रहा जैसा प्रतीत होता है।और यह स्थिति सैकेन्डों के अन्तराल की ही रहती है।विशेष बात यह है कि आड़ा तिरछा दिखने के कारण ही समस्त वस्तुएं गतिशील प्रतीत होती हैं। कभी-कभी रोगी को घूमेरों के साथ जी मितलाना और कै (उल्टियाँ) आने की सी स्थिति का अहसास होता है। और यह सब कुछ चार से छः दिवस के अंतराल में स्वयं ठीक हो जाता है।

सामान्यतः विषाणुजन्य संक्रमण (वायरल इन्फेक्शन) के कारण हमारे कानों के भीतरी भाग (रेस्पिरेटरी ट्रैक इंफेक्शन) संक्रमित हो जाता है। इसी लक्षण जन्य परेशानी को वर्टिगो (Vertigo) भ्रमि कहते हैं। यह मष्तिष्क में भी हो सकता और कर्ण के भीतरी भाग में भी हो सकता है। वर्टिगो (Vertigo) भ्रमि के कई प्रकार होते हैं।

बीपीपीवी(What is BPPV) क्या है। ?

बेनिगिन पेरोक्साइजमल पोजीशनल वर्टिगो (Vertigo) बी.पी.पी.वी. (BPPV) भ्रमि रोग की सबसे सामान्य प्रचलित वजहों मे से एक है।

BPPV के रोगियों को अचानक चक्कर आने लगना ही इसका मूल लक्षण है। और यह रोगी को अधिकतम लेटे हुए करवट बदलने या इधर-उधर स्थान बदलने की अवस्था में होता है।

बीपीपीवी कान के अन्दर की बीमारी के कारण होता है। ऐसे रोगी के कान के अन्दर स्थित gel गाढ़े पदार्थ में से कैल्शियम कार्बोनेट अपने स्थान से हटकर

तीन अर्द्धगोलाकार आकार की नलियों में आ जाता है।और फिर कान की अंदरूनी नलिकाओं में एकत्रित होने लग जाता है। इसके कारण ही नलिकाओं को मस्तिष्क के किसी आदेश पालन की प्रक्रिया में बाधा पहुँचती है।

इसके परिणाम स्वरूप कान का अंदरूनी भाग मस्तिष्क को गलत संदेश देने लगता है।

Vertigo भ्रमि की (चक्कर आने) अवस्था की अनुभूति मात्र एक-दो मिनटों की होती है।और कुछ रोगियों को Vertigo की अवधि के दौरान किसी प्रकार की अनुभूति नहीं होती, वहीं कुछ रोगियों को शारिरिक और मानसिक असंतुलन का अनुभव होता है।

(Causes of BPPV) बीपीपीवी के क्या कारण हो सकते हैं। ?

★ बी.पी.पी.वी.Vertigo भ्रमि का मुख्य कारण सिर के अंदरूनी भाग में चोट लगना मुख्य कारण हो सकता है।

★ या रोगी के लब्बे समय तक बिस्तर पर लेटे रहन bed rest करने का कारण भी हो सकता है।

★ बी.पी.पी.वी.Vertigo रोग का कारण वृद्धावस्था भी हो सकता है।

★ B.P.P.V. Vertigo कान के (ear infection) संक्रमण के कारण भी हो सकता है।

★ B.P.P.V.Vertigo कान (ear oparetion) की शल्यक्रिया के कारण भी हो सकता है।

बीपीपीवी (Symptoms of bppv Vertigo) वर्टिगो के क्या लक्षण हैं।?

BPPV Vertigo भ्रमि कुछ रोगियों में बगैर स्पष्ट कारणों के भी हो सकता है। इसे (idiopatic) कहा जाता है। BPPV Vertigo की इसके अन्तर्गत निम्न वजह हो सकती हैं।

★ घुमेरें आना (चकराना) vertigo

★ एक स्थान से दूसरे स्थान पर (स्थान परिवर्तन) के कारण होने वाली परेशानियों की अनुभूति करना। जिसके परिणाम स्वरूप आसपास की समस्त वस्तुएं घूमती हुई दिखाई देने लगती हैं।

★ जी मितलाना (मानो कै होने वाली है)

★ कै होना (उल्टियाँ होना)

जैसा की ऊपर भी बताया गया है कि BPPV Vertigo के दौरे भ्रमि आक्रमण के दौरान कुछ समय के लिये या एक-दो मिनटों के लिये ही रहते हैं। ये लक्षण कुछ समय पश्चात विलुप्त होने के बाद पुनः प्रकट होकर अपनी अनुभूति दर्ज करा सकते हैं।

रोगी जब अपने मस्तिष्क को जुम्बिश देता है उस दौरान ये अपनी सक्रियता दर्ज कराते हैं। वहीं कुछ रोगियों को घूमने या टहलने की अवस्था में शारीरक असंतुलन की अनुभूति होने लगती है।

आँखों की दृष्यक्षमता (लयबद्धिता) की असामान्य गति जिसे(Nystagmus) भी कहा जाता है में भी BPPV के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।

बीपीपीवी वर्टिगो (BPPV Vertigo treatment) भ्रमि के निदान

(BPPV Vertigo) बीपीपीवी वर्टिगो (भ्रमि) के रोगी को सिर हिलाने पर कान में (Crystols) छोटे-छोटे कण भरे हुए प्रतीत होने लगते हैं और मस्तिष्क नलिकाएँ असंतुलित होकर बिगड़ने लगती हैं,जिससे कारण मस्तिष्क के लिये गलत संकेत उत्पन्न होने लगते हैं। और इसी कारण से आँखें एक विशेष प्रकार से घूमने लगती हैं । इसे ही सामान्यतः (Nystagmus) कहते हैं ।

आँखों की मांसपेसियों एवं कान के आंतरिक हिस्से का परस्पर जुडाव रहता है जिसके कारण हमारे द्वारा मस्तिष्क को घुमाने पर भी हमारा बाहरी वातावरण के साथ संतुलन स्थिर रहता है । इसे ही (Vestibulo Ocular Reflex) वी.ओ.आर कहते हैं । कान में विस्थापित (Crystols) छोटे-छोटे कण भरे होने से (Nystagmus) आँखों के घूमने की अनुभूति होती है। (Nystagmus)के लक्षण प्रत्येक रोगी में पृथक-पृथक हो सकते हैं जो इस को बात पर निर्धारित करते हैं की अंदरूनी कान की नलिकाओं में (Crystals)छोटे-छोटे कण कहाँ जमा हुए हैं ।

(Dix-Hall Pike Roll Test) डिस्क हाल पाइक रोल टेस्ट में रोगी के सिर को विशेष स्थिति में घुमाया जाता है, जिसके कारण (Crystals) छोटे-छोटे कण अपने स्थान से इधर-उधर हो जाते हैं और भ्रमि (vertigo) के लक्षण पैदा कर देते हैं। इस दौरान डॉक्टर्स (Nystagmus) आँखों के घूमने की प्रक्रिया की जाँच करते हैं । इस परिक्षण (Test) में रोगी की (Videonystagmograph) VNG की मदद से परिक्षण किया जाता है जिससे द्वारा Otolith कणों की स्थिति का ठीक-ठीक पता लगाया जा सके । और इन कणों की स्थिति स्थान का पता लगाने के बाद ही इन्हें हटाने की लिए उपचार प्रणाली निश्चित की जाती है ।

बीपीपीवी (BPPV) का परिक्षण करने के लिये चिकित्सक (Dix Hall Pike) डिस्क हाल पाइक का ही परीक्षण करते हैं।जिनमें रोगी को लिटाकर उसके मस्तक को 45° पर घुमाया जाता है और साथ ही लगभग 30° नीचे की और झुका दिया जाता है।इस परिक्षण के दौरान यदि रोगी की आँखों में किसी तरह की भी अनइच्छित / अनावश्यक गतिविधि दिखाई दे जाये तो इसका सीधा मतलब है की मरीज़ के कान के पृष्ठभाग में स्थित अर्ध – गोलाकार नलिकाओं में BPPV हो सकने की स्थिति है।

अन्य जाँच जैसे कि (McClure Test) मस्कुलर टेस्ट पार्श्व नलिकाओं में (Otoliths) ओटोलिथ्स का परिक्षण करने के लिए किया जाता है । सिर को नीचे तक झुकाकर की जाने वाली जाँच से कान की आगे की नलिकाओं में (BPPV)बी.पी.पी.वी का पता भी लगाया जाता है ।

बीपीपीवी (Type of BPPV Vertigo) के प्रकार

(BPPV) बीपीपीवी के दो प्रकार होते हैं – (Canalithiasis Or Cupulolithiasis.)

Canalithiasis की स्थिति में नलिकाओं के तरल पदार्थ में स्वतंत्र कण स्वतंत्र चाल से विचरण करते हैं इसके उलट cupulolithiasis बहुत कम रोगियों में पाया जाता है । और इसकी स्थिति में कण cupula के साथ चुपक जाते हैं जिसके परिणाम स्वरूप बहुत तेज एवं लम्बी अवधि के लिये भ्रमि Vertigo हो सकता है ।

Canalithiasis में रोगी का मस्तक किसी खास कोण में फिराने पर एक मिनट से भी कम की समयावधि में (crystals) कणों का फिरना बंद हो जाता है। और वैसे ही (Calcium Corbonate) कैल्शियम कार्बोनेट के कण रुक जाने के कारण का भीतरी तरल पदार्थ अपनी स्थिति में स्थिर हो जाता है इसके परिणाम स्वरूप अंततः Nystagmus (Vertigo) भ्रमि भी रुक जाता है।

Cupulolithiasis में (Sensory nerves) से जुड़े (crystals) कणों के कारण से भी Nystagmus होता है, जिसकी वजह से (Vertigo) भ्रमि भी दीर्घकालिक होता है।ऐसी स्थिति में जब तक मस्तिष्क को हानिकारक परिस्थिति से निकाला न जाये।

दोनों प्रकार (Vertigo) भ्रमि के लक्षणों की पृथक-पृथक पहचान होना अति-आवश्यक है।कारण यह कि दोनों ही प्रकार के (Vertigo) भ्रमि का उपचार भी पृथक-पृथक होता है। और बीपीपीवी (BPPV) की जाँच (MRI) से किया जाना भी संभव नहीं है ।

बीपीपीवी (BPPV Treatment) का उपचार

1 (Vestibular Suppressants) वैस्टिबुलर सप्रासैंट्स से BPPV का इलाज़ नहीं किया जा सकता है। हाँ ये अवश्य है कि इन दवाओं के प्रयोग से Vertigo की अनुभूति को कुछ काल अवधि के लिये दबाया जा सकता है इनके द्वारा BPPV का इलाज़ असंभव है।

अगर (BPPV) बीपीपीवी कान के इन्फेक्शन या कर्ण शोथ के कारण होता है, तो चिकित्सक (antibiotic) एन्टीबायोटिक के साथ अन्य औषधि देते हैं।जिससे बहुत गम्भीर (BPPV vertigo)बीपीपीवी वर्टिगो भ्रमि में होने वाली कै (उल्टी), जी मितलाना,आदि की रोकथाम है जाती है ।

(BPPV) बीपीपीवी का इलाज़ औषधियों से संभव नहीं है । इसकी recurrence (पुनर्आवृति) के कारण ही और अन्य किसी चिकित्सा प्रणाली से इलाज़ न हो सकने के कारण ही कुछ रोगियों को ऑपरेशन (शल्य चिकित्सा) का परामर्श दिया जाता है ।

2. बीपीपीवी (BPPV) को सूक्ष्म कणों की स्थिति पर निर्भर करते हुऐ अन्य Repositioning विधियों के द्वारा भी ठीक किया जा सकता है। एक बार यदि आपका डॉक्टर यह पता लगा ले कि यह कण (Crystals) कौन-सी नलिका में है तथा किस प्रकार का है canalithiasis या cupulolithiasis फिर उसको बीपीपीवी वर्टिगो के उपचार की सही विधि का निर्धारण करना आसान होता है।

(Canalith या Particle Repositioning) नामक इस विधि में गुरूत्वाकर्षण की सहायता से मस्तक को विभिन्न सदिशाओं में घुमा-फिराकर इन सूक्ष्म कणों को पुनः utricle तक पहुँचाया जाता है।

Cupulolithiasis के प्रकरण में Liberatory विधि का प्रयोग किया जाता हैं, जिसमें विपरीत लटके हुऐ सूक्ष्म कणों को हटाने के लिये प्रभावित नलिका के समान सतह पर मस्तक को तेजी से घुमाया जाता है।

3.बीपीपीवी में Epley’s इप्लाइज़ की तकनीक

Epley’s तकनीक ही साधारणतः सबसे अधिक इस्तेमाल की जाती है, किन्तु यह पद्धति समस्त प्रकार के (BPPV Vertigo) बीपीपीवी वर्टिगो भ्रमि के इलाज के लिये लाभकारी नहीं हैं।

सामान्यतः व्यक्ति (Epley’s) विधी का प्रयोग स्वयं करते हैं या किसी अन्य डॉक्टर के निर्देशानुसार करते हैं। किंतु उसका फायदा रोगी को पूरी तरह मिल नहीं पाता है। और बाद में ज्ञात होता है कि Epley’s के स्थान पर अन्य किसी विधि का प्रयोग करना चाहिए था। या फिर मालूम चलता है कि Otolith किसी अन्य नलिका में ही फँसा हुआ है और कई दफा (BPPV Veritigo) बीपीपीवी वर्टिगो (भ्रमि) होता ही नहीं है।

4.(Canalith Repositioning) कैनालिथ रिपोजिशनिंग

(Canalith Repositioning) कैनालिथ रिपोजिशनिंग कि अन्य विधियों में Semont’s सेमोन्ट्स विधि,(Gufoni, Vanuchhi, Yaccovini, Reverse Epley, Deep Head Hanging)गुफ़ोनी, वानुची, याकोविनी, रिवर्स इप्ले, डीप हेड हैंगिंग

आदि विधियाँ शामिल हैं। इन विधियों का परामर्श पृथक-पृथक बीपीपीवी वर्टिगो (भ्रमि) (BPPV Vertigo) के अनुसार ही जाती है। इसलिए डॉक्टर्स स्वयं चिकित्सा करते हुए या किसी ऐसे चिकित्सक से जिसे इसके इलाज की अधिक जानकारी नहीं है से भी इलाज करवाने में सावधानियाँ बरतते हैं, जिसे (BPPV Vertigo) के विभिन्न अन्तरो और उनके परिक्षण की साथ ही परिक्षणानुसार चिकित्सा करने का अनुभव नहीं हो। जिन मरीजों को कण विस्थापन Partical Repositioning विधि से भी लाभ नहीं मिलता है या जिन रोगियों को बार-बार बीपीपीवी (BPPV) की शिकायत हो जाती है,उनके लिए खुद अपने घर पर ही की जा सकने वाली Brandt-Daroff Exercise ब्राँट्ड डोरॉफ व्यायाम काफी फायदेमंद और असरदायक होता हैं। वैसे इस व्यायाम को बहुत ध्यानपूर्वक सावधानी से ही करना चाहिए,अन्यथा इस व्यायाम को करते वक्त भी मरीज को Vertigo भ्रमि की अनुभूति हो सकती है।

5. Semont Maneuver Repositioning / यह वह विधि है जिसके द्वारा बलपूर्वक सूक्ष्म कणों का स्थान परिवर्तन किया जाता है।इस तकनीक का प्रयोग किसी प्रक्षिशित चिकित्सक से ही कराया जा सकता है। Epley’s की तरह ही इसमें भी otolith सूक्ष्म कणों को स्वतंत्र करके उन्हें उनके सही स्थान पर स्थापित किया जाता है ।

Semont’s सेमोन्ट्स विधि का प्रयोग कैसे करें –

कदम 1– रोगी को टेबल पर इस प्रकार बैठाया जाता कि उसके पैर मेज से नीचे की तरफ लटके हुए हों।

कदम 2–रोगी को जिस दिशा में कष्ट है रोगी का मस्तक उसके ठीक विपरीत दिशा में डॉक्टर्स 45°तक घुमाता है।

कदम 3– मस्तक को सीधी दिशा में 45° डिग्री घुमाते हुए फिर उल्टी दिशा से ऊपर की तरफ घुमाते हैं।इस अवस्था में नाक ऊपर की दिशा में हो।

कदम 4– 30 सेकंड तक इसी अवस्था में रखा जाता है।

कदम 5– इस स्थिति में ही रहते हुए तेजी से रोगी क मस्तक दूसरी दिशा में घुमा देते हैं जिसके कारण रोगी की नाक नीचे की तरफ ह जाती है।

कदम 6– इस अवस्था में भी 30 सेकंड तक रखाजाता है।

कदम 7– फिर धीरे-धीरे रोगी को उठाकर बैठा देते हैं। जब तक वह खड़े होने में अपने को पूरी तरह समर्थ न महसूस करे । Epley एवं semont विधियाँ (BPPV Vertigo) बीपीपीवी वर्टिगो (भ्रमि) के इलाज़ के लिये सबसे उपयोगी एवं लाभदायक प्रचलित पद्धति हैं।

6. Barbeque विधि के अनुसार

– इस विधि का उपयोग उन रोगियों पर किया जाता है जिनको (lateral semi-circular canals) पार्श्व वृत्ताकार नलिकाओं में में (BPPV Vertigo) बीपीपीवी वर्टिगो भ्रमि की शिकायत रहती है ।

7. Brandt-Dariff व्यायाम – इस एक्सरसाइज की सहायता से मस्तिष्क को अंदरूनी कान की परेशानी के कारण से मिलने वाले गलत संकेतों में तालमेल बैठाने में मदद मिलती है । Brandt-Dariff एक्सरसाइज को कई सप्ताहों तक नियमानुसार और बे-नागा प्रतिदिन दो – तीन बार करने से ही मनवाँछित परिणामों की प्राप्ती होती हैं ।

Brandt-Dariff एक्सरसाइज को कैसे करें –

बीपीपीवी वर्टिगो (BPPV Vertigo) के लिए शल्य क्रिया

इसकी शल्य क्रिया का परामर्श तब ही दीया जाता है जब इन (liberatory) विधियों से रोगी को लाभ नहीं हो रहा हो या vertigo का आक्रमण बार-बार हो रहा हो और इसी के कारण रोगी की दिनचर्या प्रभावित हो रही हो। BPPV Vertigo के इलाज़ के लिए Single neurectomy, canal occlusion या plugging

सिंगल न्यूरेक्टॉमी, कैनाल रोड़ा या प्लगिंग जैसी शल्य क्रियाएं ही की जा सकती हैं । बीपीपीवी वर्टिगो की आपातकालीन चिकित्सा साधारणतः BPPV के लक्षण तेज नहीं हुआ करते हैं, किन्तु फिर भी यदि तीव्र हैं तो तुरन्त डॉक्टर्स से संपर्क करना चाहिए।

बीपीपीवी वर्टिगो BPPV Vertigo की किन लक्षणों और किस अवस्था में आपातकालीन चिकित्सकीय सहायता लेना चाहिए –

मिनियर डिसीज यह वर्टिगो की तीसरी वह किस्म (अवस्था) है। जो अधिकतर जवान व्यक्तियों को होती है। इसके मुख्य कारणों म़े सीवियर नॉजिया के साथ साथ कै (उल्टी) होना साथ ही कान में घंटियां सी बजती हुई सुनाई देती हैं। साथ ही कानों पर दबाव की अनुभूति होती है। और इसके चरम पर होने की अवस्था में सुनने में परेशानी होने लगती है। कान के भीतर उपस्थित फ्लुएड की मात्रा जब अधिक बढ़ जाती है। तो कानों का संतुलन गड़बड़ा जाने के कारण ही ऐसा होता है। इस स्थिति की गंभीरता के कारण कई दफा शल्य क्रिया तक कराने की स्थिति आ जाती है। इसके उपचार के लिए एन्टी वर्टिगो औषधियाँ लेनी पड़ जाती हैं। ऐसी अवस्था में रोगी को जिन गतिविधियों से तकलीफ़ होती है उन गतिविधियों को नहीं करना चाहिए उन से बचना चाहिए। इसमेन रोगी को कई बार औषधि के साथ-साथ बिस्तर पूर्ण विश्राम करने का भी परामर्श दिया जाता है।इसके संक्रमण को दूर करने के लिए एंटीबायटिक औषधियों का भी प्रयोग किया जाता हैं।

रिकरेंट वैस्टीबुलोपैथी

इसके रोगी के लक्षण भी मिनियर डिसीज से मिलते-जुलते ही होते हैं।इसमें रोग स्वंय ही होकर स्वतः अपने आप ठीक हो जाता है। लेकिन कई बार यह रोग भी मिनियर डिसीज का रूप धारणकर लेता है। इस रोग का रोगी के मस्तिष्क से कोई भी लेना-देना नहीं होता है। और इसका उपचार भी मिनियर डिसीज के उपचार के अनुसार ही किया जाता है। अपनी दैनिक जीवनशैली को बदल लेने से इस रोग को ठीक किया जा सकता है।

वायरल लेबिरिनथाइटिस

हमारे दिमाग से कानों के तार नर्व्स के द्वाराजुड़े हुए होते हैं। कॉकलियर नर्व्स ही आवाज और शब्दों को सुनकर मस्तिष्क को श देने का कार्य करती हैं और वेस्टबुलर नर्व्स उसी संदेशानुसार शारीरिक अवस्था को संतुलित करती है। किटाणु संक्रमण के कारण इन दोनों नव्र्स में से किसी एक का भी संतुलन गड़बड़ाने की अवस्था में वर्टिगो की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

वेस्टीबुलर न्यूरोनिटिस

वेस्टीबुलर नर्व्स में शोथ के होने के कारण ऐसी स्थिति हो जाती है। इस के कारण वेस्टाबुलर नर्व्स मस्तिष्क को जो सूचना देना चाहती है वो गड़बड़ा जाती है। इस रोग में रोगी की श्रव्य क्षमता की हानी नहीं होती,और ना ही कानों में सुगबुगाहट किसी प्रकार की कोई ध्वनि या घंटियों की ही आवाज सुनाई देती है। इस अवस्था से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है।

चिकित्सक को रोगी के रोग संबंधी लक्षणों को ध्यान में रखते हुए उसकी तकलीफ को अच्छी तरह समझबूझ कर ही उपचार करना चाहिए। साधारणतः शुगर की जाँच के लिए कुछ खून की जाँचें करवाई जाती हैं।और ईसीजी करा्ने से हार्ट की अवस्था की जानकारी ली जाती है। यदि रोगी को दिमागी समस्या है तो फिर कैटस्कैन और एम आर आई कराने का परामर्श दिया जाता है। सावधान और जाग्रत रहने की आवश्यकता है।

प्रतिदिन नियमित योग और बर्जिश करने वर्टिगो को अपने नियंत्रण में रखा जा सकता है।ये रोग युवा और छोटे बच्चों में भी हो सकता है। अगर दो-तीन दिन से अधिक समय तक चक्कर और नॉजिया की अनुभूति के साथ ही असामान्य असहज अवस्था दिखाई दे रही हो तो ऐसी स्थिति को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।और तुरन्त चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिये। सभी प्रकार के चक्कर वर्टिगो नहीं हो सकते हैं।

आस-पास का वातावरण वस्तुएं घूमती सी दिखाई दें, या चक्कर आने की अवस्था है तो।आपको नॉज़िया और कै(उल्टी) होने की स्थिति है तब आपको कानों में किसी प्रकार की सुगबुगाहट या घंटियाँ-सी बजने की ध्वनि सुनाई दे तब। आपके कानो़ में या कान में दर्द हो रहा हो तब। आपकी आंखों से धुंधलापन दिखाई दे या आँखों में किसी प्रकार का भी दृष्टि असंतुलन की गतिविधि हो रही है तब। आपको चलने में कठिनाई आने लगे, मस्तिष्क उड़ा-उड़ा सा और हल्का भारहीन लगने लगे तब। यदि आपको देर तक खड़ा रहना मुश्किल होता हो टाँगों में लड़खड़ाहट की स्थिति हो तब।

सामान्यतः एक दो माह में एकाधबार चक्कर आने को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। दो से तीन प्रतिशत प्रकरणों में चक्कर मस्तिष्क अर्बुद (ब्रेन ट्यूमर) के कारण भी हो सकता है। इसलिए वर्टिगो की समय रहते सही समय पर जांच कराना अत्यंत आवश्यक है। इसके उलट वर्टिगो में देखा गया है कि रोगी शुरुआत में इससे होने वाली समस्याओं को अनदेखा कर देता है। विद्यार्थियों को या फिर कंप्यूटर कार्य करने वाले व्यक्तियों को विकिरण (रेडिएशन) का कारण भी हो सकता है। अतः कार्य करने की अवस्था और अवधि को भी बदलते रहना चाहिए। और चक्कर आने की समस्या को नियमित ध्यान-योग (मेडिटेशन) के साथ ही संतुलित आहार विहार से भी चक्कर आने की समस्या को नियंत्रण में किया जा सकता है।

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